तरकुलहा देवी (Tarkulha Devi) - गोरखपुर - जहाँ चढ़ाई गयी थी कई अंग्रेज सैनिकों कि बलि
तरकुलहा देवी मंदिर (Tarkulha Devi Temple) गोरखपुर से 20 किलो मीटर कि दूरी पर तथा चौरी-चौरा से 5 किलो मीटर कि दुरी पर स्तिथ हैं। तरकुलहा देवी मंदिर (Tarkulha Devi Temple) हिन्दू भक्तो के लिए प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
यह मंदिर अपनी दो विशेषताओ के कारण काफी प्रशिद्ध हैं।
पहला इस मंदिर से जुड़ा क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह(Bandhu singh) का इतिहास :-
तरकुलहा देवी (Tarkulha Devi) मंदिर में साल में एक बार मेला भरा जाता हैं जिसकी शुरुआत चेत्र रामनवमी से होती हैं यह मेला एक महीने चलता हैं। यहाँ पर मन्नत पूरी होने पर घंटी बाँधने का भी रिवाज़ हैं, यहाँ आपको पुरे मंदिर परिसर में जगह जगह घंटिया बंधी दिख जायेगी। यहाँ पर सोमवार और शुक्रवार के दिन काफी भीड़ रहती हैं।
Tarkulha Devi |
पहला इस मंदिर से जुड़ा क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह(Bandhu singh) का इतिहास :-
यह बात 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से पहले की है। इस इलाके में जंगल हुआ करता था। यहां से से गुर्रा नदी होकर गुजरती थी। इस जंगल में डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह (Babu Bandhu Singh) रहा करते थे। नदी के तट पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर वह देवी की उपासना किया करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्ट देवी थी।
उन दिनों हर भारतीय का खून अंग्रेजों के जुल्म की कहानियाँ सुन सुनकर खौल उठता था। जब बंधू सिंह(Bandhu singh) बड़े हुए तो उनके दिल में भी अंग्रेजो के खिलाफ आग जलने लगी। बंधू सिंह(Bandhu singh) गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे, इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह(Bandhu singh) उसको मार कर उसका सर काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते ।
पहले तो अंग्रेज यही समझते रहे कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जा रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें भी पता लग गया कि अंग्रेज सिपाही बंधू सिंह के शिकार हो रहे हैं। अंग्रेजों ने उनकी तलाश में जंगल का कोना-कोना छान मारा लेकिन बंधू सिंह(Bandhu singh) नके हाथ न आये। इलाके के एक व्यवसायी की मुखबिरी के चलते बंधू सिंह अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गए।
अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी, 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें 6 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। इसके बाद बंधू सिंह(Bandhu singh) ने स्वयं देवी माँ का ध्यान करते हुए मन्नत मांगी कि माँ उन्हें जाने दें। कहते हैं कि बंधू सींह की प्रार्थना देवी ने सुन ली और सातवीं बार में अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने में सफल हो गए।
अमर शहीद बंधू सिंह को सम्मानित करने के लिए यहाँ एक स्मारक भी बना हैं।
दूसरी विशेषता यहाँ मिलने वाला मटन बाटी का प्रसाद:-
यह देश का इकलौता मंदिर है जहाँ प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं। बंधू सिंह ने अंग्रेजो के सिर चढ़ा के जो बाली कि परम्परा शुरू करी थी वो आज भी यहाँ चालु हैं। अब यहाँ पर बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में बाटा जाता हैं साथ में बाटी भी दी जाती हैं।
वैसे तो पुराने समय में देवी के कई मंदिरो में बलि कि परम्परा थी लेकिन समय के साथ साथ लगभग सभी जगह से यह परम्परा बंद कर दी गयी लेकिन तरकुलहा देवी (Tarkulha Devi) के मंदिर में यह अब भी चालु है हालाकि इस पर अब काफी विवाद है और इसे बंद कराने के लिए कोर्ट में केस भी चल रहा हैं।
Matan Baati |
Tarkulha Devi Temple |
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